हम में से ज्यादातर लोग मध्यवर्गीय भारतीय परिवारों में पले-बढ़े हैं और हमने अपने अभिभावकों को जीवनयापन के लिए पिसते हुए देखा है। यहाँ तक कि इस संकटग्रस्त परिवेश में, मैं मानता हूँ कि मेरे अभिभावकों ने भारत और यू.के. में बहुत सारे लोगों की अपेक्षा ज्यादा झंझावात झेले हैं, ताकि मुझे और मेरी बहन को बेहतरीन तरीके से पाला-पोसा जा सके। उन्होंने जो शिक्षा मुझे प्रदान की, उसके लिए मैं उनका ऋणी हूँ और मेरा मानना है कि जीवन एक बड़े बैंक बैलेंस से कहीं बढ़कर है। मेरे पेशेवर जीवन में, मैं तीन लोगों का ऋणी रहा हूँ और उनका आभार जताना मेरी जिम्मेदारी बनती है। जॉन के, जिनकी फर्म-लंदन इकोनॉमिक्स मेरी पहली नियोक्ता थी, जहाँ मैंने लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से ग्रेजुएशन करने के बाद नौकरी शुरू की, ने मुझे अपने बारे में सोचने का फायदा सिखाया, बजाय पुरातन परंपरागत बुद्धिमत्ता में भरोसा करने के स्टीव नॉर्टन, एसेंचर में मेरे मैनेजमेंट कंसल्टेंट रहने के दौरान मेरे मैनेजरों में से एक, जिन्होंने मुझे वह ढाँचागत तरीका सिखाया, जिसके जरिए मुझे लिखना और सोचना आया, निक पॉल्सन एलिस ने मुझे स्टॉकब्रोकिंग की दुनिया में कदम रखने का मौका दिया, जब उन्होंने दक्षिण लंदन स्थित अपने फ्लैट से क्लियर कैपिटल शुरू किया और मुझे सह संस्थापक बनने का मौका दिया।
भारतीय स्टॉक मार्केट में काम करने के कुछ वर्षों में ही मैंने इस किताब के लिए फंड मैनेजरों का इंटरव्यू करने के दौरान काफी कुछ गहनता से सीखा। इस किताब में उल्लिखित तमाम गुरुओं से परे भी तीन फंड मैनेजर हैं, जिनके प्रति मैं आभारी हूँ कि उन्होंने मुझे प्रोत्साहित किया और फंड मैनेजमेंट के तमाम पहलुओं से वाकिफ कराया—केनेथ एंद्रादे, जहीर सिताबखान और सौमेंद्र नाथ लाहिड़ी। इसी तरह से महत्वपूर्ण प्रायोगिक सीख मुझे अपने दोस्तों आलोक वाजपेई और अनिरुद्ध दत्ता से मिली और मैं भारतीय स्टॉक मार्केट के महासागर में तैरने की कला सीख पाया।
पश्चिमी फंड मैनेजरों की तमाम अच्छी किताबें मशहूर हैं, लेकिन वे पश्चिमी देशों के बाहर उतनी चर्चित नहीं हैं। अतः उभरते मार्केट फंड मैनेजरों पर एक अच्छी सामग्री का यहाँ नितांत अभाव है। इस परिप्रेक्ष्य में, मुझे दो पब्लिकेशंस बेहद लाभप्रद लगे। पहला तो भारतीय फंड मैनेजरों के इंटरव्यू पर आधारित 2005 में पहला सेट लॉञ्च हुआ और उसे एक किताब में समाहित करते हुए एक किताब इंडियाज मनी मोनार्क्स लिखी चेतन पारीख ने, जो कि खुद जाने-माने मनी मैनेजर थे। दूसरा था-आउटलुक प्रॉफिट का विशेष संस्करण। यह अंक 19 मार्च, 2010 को प्रकाशित हुआ था
और इस मैग्जीन में तमाम भारतीय फंड मैनेजरों के इंटरव्यू थे, जो बेहद गहनता से तैयार किए गए थे और उनकी बातों में स्टॉक मार्केट को लेकर काफी अंदरूनी जानकारियाँ निहित थीं। मेरे नियोक्ता, ऍबिट कैपिटल ने मुझे किताब लिखने की अनुमति प्रदान की और वह भी यह जानते हुए कि इससे मेरा ध्यान बँट सकता है और संस्था का काम प्रभावित हो सकता है। राहुल गुप्ता और अशोक वाधवा का शुक्रिया, जिन्होंने मेरी भावना को समझा और उसकी कद्र की।
तमाम सहयोगियों ने इस किताब के रिसर्चवाले हिस्से को पूरा करने में मेरी मदद की। मैं विशेष तौर पर करण खन्ना, गौरव मेहता, प्रतीक सिंघानिया, परिता अशार, रक्षित रंजन, रितिका मांकड़ मुखर्जी, पंकज अग्रवाल, नितिन भसीन, भार्गव बुद्धदेव, दयानंद मित्तल और अश्विन शेट्टी का उनके सहयोग के लिए शुक्रिया अदा करता हूँ। मैं अंकुर रुद्र का भी शुक्रिया अदा करता हूँ, जिन्होंने मेरे साथ एक दशक तक काम किया।
मैं अब अपने गृह नगर की तरफ आता हूँ, जहाँ तीन लोगों ने मेरे वहाँ होने के मौके को जमकर भुनाया। उस दौरान मैं
अपने लैपटॉप पर किताब का काम कर रहा था। मेरे बच्चे जीत और मालिनी और मेरी पत्नी सर्वानी ने मेरे तमाम
नाटक और त्योरियों को झेला, जब मैं अध्यायों को लेकर खीझ जाता था। उनके स्नेह और सहयोग के बिना मेरे लिए
इस किताब को पूरा कर पाना संभव नहीं था और न ही स्टॉक मार्केट में मैं इतने लंबे समय तक झंझावातों को ही झेल पाता। मैंने यह किताब उन्हें ही समर्पित की है और वादा किया है कि साल भर से पहले अगली किताब शुरू नहीं करूँगा।
यह किताब बगैर अरुंधती दासगुप्ता की बिजनेस स्टैंडर्ड बुक्स के बगैर पूरी नहीं होती और उन्होंने मुझे प्रेरित न किया
होता तो तीन साल के दौरान यह किताब शायद पूरी न हो पाती। मैं उनका शुक्रिया अदा करता हूँ, जिन्होंने मुझे इस किताब को लेकर पूरी तरह फोकस्ड रखा और मैं बीयर मार्केट में ब्रोकरेज के लिए भारी संघर्ष के दबाव से मुक्त होका। और अंत में मैं विशेष शुक्रिया अदा करना चाहूँगा ऍबिट के अपने स्टाफ का मुझे पेय पदार्थ देनेवाले से लेकर उन लोगों तक का, जिन्होंने ऑफिस का माहौल बेहद सौम्य बनाए रखा और उन लोगों का भी, जो रोज सुबह ऐंबिट हाउस की छत पर तिरंगा फहराते हैं। इन सबका सहयोग हमारे दैनिक जीवन को हमेशा खास और आनंदमय बनाए रहा और इस तरह इस किताब से प्राप्त होनेवाली रॉयल्टी ओदिती फाउंडेशन को जाएगी, जो ऐंबिट की तरफ से बनाई गई एक गैर लाभकारी संस्था है, जो इस संस्था के स्टाफ की मदद के लिए है।
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